हवा छीन रही सांसें…. देशवासियों की औसत आयु 5 वर्ष कम

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एक्यूएलआई रिपोर्ट तैयार करने से पहले की गई रिसर्च के मुताबिक पीएम 10 के बजाय पीएम 2.5 के संपर्क में रहने वाले व्यक्ति की औसत आयु तेजी से कम होती है।

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पीएम 10 को पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है।

दूषित हवा अब सांसों पर पहरा लगाने लगी है। हालिया रिसर्च में सामने आए आंकड़े फिलहाल यही हकीकत बयां करते हैं। अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी द्वारा जून 2022 में की गई एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) की रिपोर्ट से साफ है कि बढ़ते वायु प्रदूषण ने भारतवासियों की औसत आयु को पांच साल तक घटा दिया है। इसमें भी शहरी क्षेत्रों के हालात ज्यादा खराब हैं। रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली, लखनऊ में जहां औसत आयु लगभग दस साल तक कम हुई है, वहीं भोपाल, इंदौर और प्रदेश के अन्य शहरों में उम्र 8 साल तक कम हुई है।

एक्यूएलआई रिपोर्ट तैयार करने से पहले की गई रिसर्च के मुताबिक पीएम 10 के बजाय पीएम 2.5 के संपर्क में रहने वाले व्यक्ति की औसत आयु तेजी से कम होती है। रिपोर्ट के अनुसार देशवासियों की औसत आयु फिलहाल 70 वर्ष है, यदि वायु प्रदूषण को देश में इंटरनेशनल मानकों के तहत नियंत्रित किया जाता, तो यह कम से कम 75 वर्ष होती। दुनिया के अन्य देशों जैसे कनाडा में औसत उम्र 82 वर्ष और यूएसए में लगभग 78 वर्ष है। रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह से स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं बढ़ी हैं उसके अनुसार भारत में औसत आयु भी बढ़नी चाहिए लेकिन देश में औसत आयु बढ़ने की रफ्तार बेहद सुस्त है, जिसका मुख्य कारण वायु प्रदूषण ही है।

बात अगर मध्य प्रदेश की करें तो यहां लोगों की औसत आयु 66.5 साल है, जबकि 74 साल की औसत आयु के साथ केरल देश में अव्वल है। ज्यादा उम्र तक जीने के मामले में उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्य भी मध्यप्रदेश से आगे हैं।

“अदृश्य” है दुश्मन

दुनिया और देश के सभी हिस्सों में की गई रिसर्च के आधार पर तैयार रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला पहलू है कि जिंदगी पर संकट की सबसे बड़ी वजह दिखाई न देने वाले जहरीले कण हैं जो वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर पर ले जा चुके हैं। ये महीन कण सांस के जरिए आसानी से फेफड़ों में पहुंचकर सेहत के दुश्मन बन जाते हैं।

क्या है पीएम 2.5-10

पीएम 10 को पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है। इसमें धूल और धातु के सूक्ष्म कण शामिल हैं। पीएम 2.5 ऐसे कण हैं जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है। इसमें महीन धूल, कंस्ट्रक्शन से निकले कण, पराली जलाने से होने वाला धुआं आदि शामिल है। पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है जिससे विजिबिलिटी घट जाती है।

एक्यूआईएल की रिपोर्ट के अहम बिंदु

  1. भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश है। यहां सूक्ष्म कणों (पीएम 2.5) के 5 µg/m3 या कम प्रदषूण रहने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देश का पालन न करने पर भारत में जितनी औसत आयु होती, वायु प्रदूषण के कारण वह अपेक्षाकृत 5 वर्ष घट जाती है। ऐसे में भारत के कुछ क्षेत्रों की स्थिति औसत से बहुत खराब है। विश्व के सबसे प्रदूषित शहर, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु प्रदषूण से जिंदगी लगभग 10 साल घट जाती है।
  2. भारत की पूरी 1.3 अरब आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां कणीय प्रदषूण के सालाना वार्षिक औसत का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देश से अधिक है। 63 प्रतिशत से अधिक आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां प्रदषूण का स्तर देश के अपने राष्ट्रीय एयर क्वालिटी इंडेक्स (40 µg/m3) से अधिक है।3. औसत जीवन के पैमाने पर देखा जाए तो कणीय प्रदषूण भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसके विपरीत, औसत जीवनकाल कुपोषण से लगभग 1.8 वर्ष और धूम्रपान से 1.5 वर्ष घटता है।
  3. कणीय प्रदषूण समय के साथ बढ़ता गया है। वर्ष 1998 से औसत वार्षिक कणीय प्रदषूण 61.4 प्रतिशत बढ़ गया है। इससे औसत जीवन संभाव्यता और भी 2.1 साल घट गई है। पूरी दुनिया में 2013 से जितना प्रदषूण बढ़ा है उसमें भारत का 44 प्रतिशत योगदान है।
  4. उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी भाग में 51 करोड़ लोग रहते हैं जो देश की आबादी के लगभग 40 प्रतिशत हैं। अगर प्रदषूण का वर्तमान स्तर बरकरार रहता है, तो इस इलाके में रहने वाले लोगों का औसत जीवन 7.6 वर्ष घटने की आशंका है।

गांव के मुकाबले शहर खतरे के मुहाने पर

शहरों की एयर क्वालिटी यानी वायु की गुणवत्ता पहले से ही सरकार के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है। आलम ये है कि दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में दिल्ली शीर्ष पर है जबकि वायु प्रदूषण में देश पांचवें स्थान पर है। इस मामले में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश और पाकिस्तान पहले और तीसरे स्थान पर हैं। इधर, प्रदेश के हालात भी ऐसे ही हैं। मप्र प्रदूषण निवारण मंडल के एग्जीक्यूटिव इंजिनियर एचएस मालवीय के अनुसार पिछले एक दशक में मध्य प्रदेश में सिंगरौली की हवा सबसे खराब जबकि बाकी शहरों भोपाल, इंदौर, उज्जैन,ग्वालियर और सागर की एयर क्वालिटी मॉडरेट या खराब रही है, जो लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालती है। प्रदूषण निवारण मंडल के अफसरों के मुताबिक एमपी के अधिकांश शहरों में एक्यूआई लगभग 51-100 के बीच आता है, जबकि इसे 2024 तक घटाकर 40 करने का लक्ष्य रखा गया है। एक्यूआई की गणना पीएम 2.5 और पीएम 10 के साथ अन्य उत्सर्जन मानकों को आधार मानकर की जाती है।

बचाव की राह कठिन लेकिन असंभव नहीं

भोपाल में पदस्थ वरिष्ठ चिकित्सक डॉ रतन कुमार वैश्य मानते हैं कि भोपाल में लगातार सांस संबंधी रोगों के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं और इसकी सबसे अहम वजह वायु प्रदूषण ही हैं। डॉ वैश्य के मुताबिक यही हालात भोपाल के अलावा इंदौर और उज्जैन भी दिखाई देते हैं और इस हकीकत को नकारा नहीं जा सकता कि वायु प्रदूषण से गंभीर रूप से प्रभावित मरीजों की जान भी जा रही है, जिसका सीधा संबंध औसत आयु से होता है। प्रदेश में वायु प्रदूषण को लेकर काम करने वाली इंटर न्यूज द्वारा इंदौर में इसे लेकर एक सर्वे भी कराया गया था, जिसमें उजागर हुआ कि वायु प्रदूषण के कारण न केवल अस्थमा, एलर्जी और संक्रामक बीमारियां बढ़ रही हैं बल्कि लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी लगातार कम हुई है। पिछले दिनों इंदौर में आयोजित अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क और इंटर न्यूज द्वारा आयोजित एक कार्यशाला के दौरान आयोजकों में शामिल संस्था वाइटल स्ट्रेटेजी के सौऱभ पोरवाल ने भी आंकड़ों के जरिए बताय़ा था कि दुनिया भर में सालाना 66 लाख लोगों की जान वायु प्रदूषण के कारण जाती है, वहीं वर्कशॉप में शामिल प्लानिंग एक्सपर्ट अजरा खान का भी मानना है कि इन आंकड़ों से चिंतित सरकारों को अब शहरी ढांचे और प्लानिंग में बड़े बदलाव करने चाहिए।

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