कोनोकार्पस से फैल रहा अस्थमा और एलर्जी, भोपाल स्मार्ट सिटी पार्क में लगे हैं पेड़
सावधान… जानलेवा हो सकती है ये हरियाली! पांच राज्यों ने लगाया कोनोकार्पस पर प्रतिबंध, पर्यावरण को भी फायदा नहीं।

स्मार्ट सिटी के पार्क में लगे कोनोकार्पस
नितिन साहनी, भोपाल। कोनोकार्पस के नाम से शायद प्रदेश का आम आदमी कम ही परिचित हो लेकिन ये सजावटी पेड़ अस्थमा, एलर्जी, जुकाम, खांसी जैसे रोग साथ लेकर आता है। स्वास्थ्य के नजरिए से बेहद हानिकारक इन पेड़ों को भोपाल की स्मार्ट सिटी कंपनी ने धड़ल्ले से बगीचों और सड़कों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए लगा दिया। आलम ये है कि भोपाल के स्मार्ट सिटी पार्क में ही कोनोकार्पस के दो दर्जन से ज्यादा पेड़ हैं। जानकारी के मुताबिक प्रदेश के अन्य शहरों में भी सरकारी एजेंसियों ने कोनोकार्पस लगाए हैं। इसके अलावा मैरिज गार्डन, रिसोर्ट, होटल, लॉन, पार्टी गार्डन में भी कोनोकार्पस के पेड़ अब बड़ी संख्या में दिखाई देने लगे हैं। विदेशी मूल के इस पेड़ के इन्हीं अवगुणों की वजह से देश के पांच राज्य तो इसे प्रतिबंधित तक कर चुके हैं।
अस्थमा समेत गंभीर बीमारियों की बनते हैं वजह
भोपाल के श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष दुबे के अनुसार कोनोकार्पस के परागकण मानव शरीर में अस्थमा, एलर्जिक राइनाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों के अलावा सांस संबंधी कई रोगों की वजह भी बनते हैं। इतना ही नहीं इस पेड़ की वजह से जुकाम और त्वचा के रोग भी हो सकते हैं। हाल ही में भोपाल में अस्थमा का एक गंभीर केस सामने आया। इसमें मरीज की स्थिति दवाओं से भी सुधर नहीं पा रही थी। डॉक्टर से बातचीत के दौरान पता चला कि इस व्यक्ति ने हाल ही के दिनों में कोनोकार्पस का पौधा लगाया है। इसे काटने के बाद मरीज की हालत सुधर गई।
खींच लेता है जमीन का सारा पानी
कोनोकार्पस की विशेषता है कि भरी गर्मियों में भी इसकी हरियाली कम नहीं होती। यही कारण है कि जानलेवा रोगों को न्यौता देने वाले पेड़ को शो पीस और इलाके को हरा-भरा दिखाने के लिए बहुतायत में लगाया जा रहा है। कोनोकार्पस को खास देखभाल की जरूरत नहीं होती और यह मौसम की बेरहमी भी सहन कर लेता है। तपती गर्मी, भीषण शीतलहर, पाले का प्रकोप, अल्प वृष्टि या बेहद अधिक बारिश में भी इसे ज्यादा नुकसान नहीं होता। यही वजह है कि कम खर्च में सदैव हरा रहने वाला ये पेड़ इन दिनों ग्रीन डेकोरेशन के नाम पर खूब लगाया जा रहा है। कोनोकार्पस ज़मीन से काफी ज़्यादा पानी खींच लेते हैं, जिससे भूजल स्तर में गिरावट आती है और अन्य पेड़-पौधों की वृद्धि पर असर होता है। इस विदेशी पेड़ की जड़ें भी मिट्टी के नीचे काफी गहराई तक चली जाती हैं, जो वाटर सप्लाई और सीवर नेटवर्क को भी क्षति पहुंचाती हैं।
इन 5 राज्यों ने लगाया बैन
असम, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु
यह विदेशी मूल का पेड़
भोपाल के एमवीएम कॉलेज में बॉटनी की प्रोफेसर डॉ भारती कुमार के अनुसार ये मूल रूप से कोनोकार्पस मैंग्रोव (दलदली) इलाकों में पाई जाने वाली एक खरपतवार है। पत्तियां मोटी होने के कारण ये कार्बन डाई ऑक्साइड का अवशोषण न के बराबर कर पाती हैं, लिहाजा पर्यावरण संरक्षण में इनका योगदान न के बराबर होता है। इसके अलावा इस पेड़ की जितनी ऊंचाई होती है, उससे दो गुनी गहराई तक इसकी जड़ें जमीन में चली जाती हैं, जो बाकी पेड़ों को पनपने नहीं देतीं। इसके पेड़ पर सर्दियों के मौसम में फूल आते हैं, जिसके परागकण स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं और कई बीमारियों को जन्म देते हैं।
इन चार वजहों से लोगों में बहुतायत में हो रहा उपयोग
- लोगों को इसके स्वास्थ्य विरोधी होने की जानकारी न होना
- बेहद तेजी से बढ़ना, केवल 9 माह में ये पौधा पेड़ की शक्ल लेकर चार मीटर तक ऊंचा हो जाता है।
- पतझड़ न होने के कारण हर मौसम में हरा दिखाई देना
- इस पेड़ की फ्रेग्रेंस (गंध) पक्षियों को रास नहीं आती, इसलिए इस पर कोई भी पक्षी घोंसला नहीं बनाता।
इनका कहना है:
स्मार्ट सिटी के पार्क में लगे कोनोकार्पस के बारे में आपसे जानकारी मिली है। अन्य प्रदेशों में प्रतिबंध की भी जानकारी नहीं है। इसका ब्यौरा जुटाने के बाद कार्रवाई की जाएगी। अंजू अरुण कुमार, सीईओ, स्मार्ट सिटी कंपनी, भोपाल।